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आठ पहर का दाझणा / नईम
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आठ पहर का दाझणा
हमसे सहा न जाए-कबीरा!
बापू के इस रामराज्यमें,
दैहिक, दैविक, भौतिक तापा,
किसके सर बाँधू मैं साफा?
जला जा रहा मेरा आपा।
यह घर खाला का मगर
हमसे रहा न जाए-कबीरा!
रूख जड़ों से उखड़ जाय जब,
राजा हाथी बिगड़ जाय जब,
प्रजातंत्र को चाटेंगे क्या सारी
दुनियाँ बिगड़ जाय जब?
इस रौरव वैतरणीजल में-
हमसे बहा न जाए कबीरा।
घर-घर में शैतान नुमाया,
खरच रहे जो नहीं कमाया।
साहूकार-लफंगों ने मिल,
घर उजाड़कर नगर बसाया;
कहें-सुनें की माफी चाहूँ-
आगे कहा न जाए कबीरा!
साहब मेरा रांगणा,
हमसे रहा न जाए कबीरा।