आठ मुक्तक / आशुतोष द्विवेदी
1.
याद से जाते नहीं, सपने सुहाने और तुम ।
लौटकर आते नहीं, गुज़रे ज़माने और तुम ।
सिर्फ़ दो चीज़ें कि जिनको खोजती है ज़िंदगी -
गीत गाने, गुनगुनाने के बहाने और तुम ।
2.
दफ़्तरों में दर्द के शिकवे-गिले होते नहीं ।
मेज़ पर तय आँसुओं के मामले होते नहीं ।
फाइलों में धड़कनों को बंद मत करिए कभी,
काग़ज़ों पर ज़िंदगी के फ़ैसले होते नहीं ।
3.
ढल गया दिन और अपना ख्याल तक आया नहीं,
रात आई तो किसी कि आरज़ू में कट गई ।
बेरहम दुनिया में जीना था बहुत मुश्किल मगर,
ज़िंदगी ख़ामोशियों से गुफ़्तगू में कट गई ।
4.
धडकनें बेचैन, साँसों में उदासी है बहुत ।
ऐसा लगता है तुम्हारी रूह प्यासी है बहुत ।
तुम पियो जमकर कहीं कम पड़ नहीं जाए तुम्हें,
क्या हमारी बात, हमको तो ज़रा-सी है बहुत ।
5.
तेरी महफ़िल में चले आए हैं लाशों कि तरह,
और आए हैं तो जी कर ही उठेंगे साक़ी ।
तूने बरसों जिसे आँखों में छिपाए रखा,
आज उस जाम को पी कर ही उठेंगे साक़ी ।
6.
ख़्वाब नाज़ुक थे छू लेने से बिखर जाते थे ।
इसलिए हम उन्हें बिन छेड़े गुज़र जाते थे ।
उम्र भर पर्दा हटाया न गया रुख से कभी,
पहली कोशिश में ही वो शर्म से मर जाते थे ।
7.
हमने फिर रेत को मुट्ठी में पकड़ना चाहा,
भूल बैठे कि वो हर बार फिसल जाती है ।
हमने सपनों की हक़ीक़त को न समझा अब तक,
आँख के खुलते ही ये दुनिया बदल जाती है ।
8.
हर नए मोड़ पे बस एक नया ग़म चाहा ।
गहरे ज़ख्मों के लिए थोड़ा-सा मरहम चाहा ।
हमने जो चाहा उसे पाया हमेशा लेकिन,
एक अफ़सोस यही है कि बहुत कम चाहा ।