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आठ वेदनागीत (कविता का अंश) / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल

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आठ वेदनागीत (कविता का अंश)

हो गये अब प्राण परिचित, वेदने तुमसे,
अब तुम्हारे ही नयन जल से जलज विकसे,
अब तुम्हारी ज्योति का हूं मैं सलभ पागल
मस्त हूं मैं पी तुम्हारी निर्झरी का जल,
देखता हूं मै तुम्हारी सब सब जगह छाया,
पत्र कुसुमों में तुम्हारी जेा बसी काया।
वेदने तुम सद छवि के फूल में बसती
मृत्यु सी तुम प्राण के हो साथ फिरती।
( आठ वेदनागीत पृष्ठ 232)