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आड़ी तिरछी लकीरें / विजेंद्र एस विज

Kavita Kosh से
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तुम,
बस दूर खड़े
एक मूक दर्शक की भाँति
आवाक देखते रहे / अवाक
और,
मुझे उन चन्द
आड़ी-तिरछी लकीरों ने
असहाय बना दिया
तुम!!!
चाहते तो रंगो की एक दीवार
खड़ी कर सकते थे