भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आतंकवाद / पूर्णिमा वर्मन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


असंतोष की कंदराओं में

उफनता है

आतंकवाद

लावे की तरह

फूटता है

बहुमंज़िली इमारतों पर

आग और धुएँ के साथ

लेटे हुए प्राण

असंख्य निर्दोष लोगों के


आतंक!

जो सत्तावाद, अव्यवस्था

और असमानता से जन्मता है

घना होता है

आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक दमन से

हवा पाता है

दिशाहीन सरकारों

और

लोलुप राजनीतिज्ञों से


बरसों-बरसों-बरसों

कोई इसे देखना नहीं चाहता

सब आँखें बंद रखना चाहते हैं

धृतराष्ट्र की तरह

जब तक

यह फूटता नहीं

वज्रास्त्र की तरह

आकाश से...