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आततायी / असंगघोष
Kavita Kosh से
जो बरसता नहीं
वह बादल
पानी ले
कहाँ चला जाता है
आसमां निहारते
ढेर सारे लोगों को
प्यासा रख
क्या वह डूब जाता है
वादों के दरिया में
जब बरसता था भरपूर
गरजना तोड़ती है
झकझोड़ती है
उनींदे सपने
क्या बिना बँटे पानी
बरसेगा एक-सा
शायद नहीं
हरिगज नहीं
आततायी इन्द्र
परोपकारी तो
कतई नहीं है फिर
क्यों बरसेगा
हमारे लिए
वो सूखा ही सही
फैलाए अपने हाथ
पसर जाएगा
हमारे
अरमानों में
जबरिया राज करने