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आता है कोई / विमल राजस्थानी

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डोलो भूधरो ! समय रहते चेतो, रीती झोलियाँ भरो
वह देवदूत अंजलि फैला ढिग आता है कोई

(1)
पत्थर में भी दिल होता है
बहता करूणा का सोता है
दिन-रात आँसुओं से सूखी-
धरती की गोद भिंगोता है

(2)
भारत के धनी ! तुम्हारे भी-
अंतर में करूणा सोती है
तुम भी रोते हो, फर्क यही-
दुनिया कह देती-‘मोती’ है

(3)
रोको न, दया को मौका दो
दृग-पथ से बाहर आने दो
इस अवसर पर उर-सीता को
अपना आँचल फैलाने दो

(4)
अब तक तो तुमने अम्बर के-
नक्षत्रों को ही देखा है
देखो-उस ओर पाँव-पैदल-
आ रही ‘ज्योति की रेखा’ है

(5)
सपनों के महलों से उतरो
कोमल मिट्टी पर चरण धरो
इन चलती-फिरती लाशों की-
आँखों में जीवन बन बिखरो

(6)
जितना दे सको, दिये जाओ
खुल-खिलकर करूणा बिखराओ
डालो इस अमृत-यज्ञ में हवि
जीवन को दीप्त किये जाओ

(7)
देखो-आतुर ये पड़ने को-
इस धरती पर कुछ नये चरण
अम्बर में बिजली-सी कौंधी
नक्षत्र हो गये निरावरण
तुम भी इस ज्योति-पर्व में कुछ किरणों का दान दिये जाओ
इस ओर रश्मि के रथ पर चढ़ जय-वाद्य बजाता है कोई
तुमको तो देना है थोड़ा, उस औघड़ दानी को देखो-
भूखे भारत के चरणों पर सर्वस्व लुटाता है कोई