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आती नहीँ सांस / ओम पुरोहित ‘कागद’
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थोड़ी सी
खुली हवा मिलते ही
हम ने बो दी
...फसल अधिकारोँ की
फिर किया इंतजार !
कुछ ही दिन बाद
कानून लहलहाए
आसमान छूने लगे
फल फिर भी न आए
अब कानूनोँ के झुरमुट मे
आती नहीँ सांस !
अब तो धरा
करनी ही पड़ेगी
फिर से तैयार
नई फसल के लिए ।