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आत्मकथा निकाल दी जाए तो / विजय चोरमारे / टीकम शेखावत

नहीं जीता कवि एकाकी
कभी भी केवल अपने लिए
बस लगता है अकेला-सा
एकाकी और एकान्तप्रिय हमेशा हर समय

कवि के मन में, ह्रदय में,
कलेजे में, अन्तःकरण में
होती है लोगों के भीड़, बहुत बड़ी भीड़
सगे सम्बन्धी, पराए, ख़ून के रिश्ते वाले
दूर के रिश्ते वाले
जान पहचान के
अनजाने
जोड़े हुए
तोड़े हुए
टूटे हुए इनसानों की
हर किसी के सुख को देखते
और दुख में हमसफ़र बन कर
जीता हैं कवि अकेले ही, एकाकी व एकान्तप्रिय

नीति अनीति की समाजमान्य परिकल्पनाओं
के लिए कोई स्थान नहीं होता कवि के पास
कवि स्वयं ही तय करता है
अपने जीने के नियम
जिन्हें नहीं है कोई बन्धन
रेडलाइट एरिया में भी कवि
चोरी-छुपे नहीं गुज़रता
नहीं देखती उसकी निगाहें ललचाई नज़रों से
वह मिलाता है सीधे आँखों से आँखे, अन्दर तक
करता है कोशिश आँखों की वेदना तक पहुँचने का
माँ-बहन-सखी-प्रेयसी, कोई भी रिश्ता
जोड़ लेता है वह बिना किसी हिचकिचाहट के
जानता है बस इतना ही
इनसान को देखा जाए इनसान के नज़रिए से
बस यही जानता है वह
इसके अलावा नहीं है उसके पास और कुछ
होटल वाले की उधारी बकाया रखता है कवि
पानवाले के रास्ते से दूर रहने की कोशिश करता है कवि
बार-बार बदलता है परचून की दूकान
हर कोई प्रयास करके
ईमानदारी से जीने की लड़ाई लड़ता है

लिखता है कवि प्रेम कविता
कवि की पत्नी उसमे खोजती है
ज्ञात, अज्ञात प्रेमिका का चेहरा
कवि पत्नी से भी प्रेम करता है
परन्तु फटे-तंगहाल गृहस्थी में
नहीं मिलता पत्नी को कभी
अपना चेहरा
उसकी कविता में

सारे पति सब्ज़ीमण्डी जाते हैं
बच्चो को होमवर्क करते है
अभिभावक सभा में जाते हैं...
प्लम्बर, इलेक्ट्रीशियन, कॉकरोच मारने की दवा
नल गलना, एम्सिल, ख़राब रिमोट
इन सब से दूर रहता है कवि

मत खोजिए कविता में
कवि की आत्मकथा
वह उसकी अकेले भर की नहीं होती कभी
तब भी
कविता में से कवि की आत्मकथा
निकाल दी जाए
तो फिर क्या बचेगा कविता में?

मूल मराठी से अनुवाद — टीकम शेखावत