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आत्मकातरता / कात्यायनी

एक कम्बल था मेरे पास
आत्मा को ठण्ड से बचाने के लिए
वह कवि दोस्त माँग ले गया।
निर्लज्ज को-
इतना प्यार था अपनी कविता से।
कबीर मगहर में चादर बुन रहे थे
और निर्गुन गा रहे थे।
पता चला कि कवि दोस्त से
किसी ने पूछ दिया उसकी कविता का अर्थ।
दुःख और ग्लानि उसे मृत्यु तक ले गई।
टाँग दिया ख़ुद को सूली पर
सरे-बाज़ार उसने नंगा।

रचनाकाल : जनवरी, 2000