भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आत्मन्‌ के गाए कुछ गीत (चलना) / प्रकाश

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आत्मन्‌ अपनी खंजड़ी सीने पर थामे चलता जाता था
वह लगभग नींद में होता कुछ बुदबुदाता रहता था
उसका एक पैर धरती पर गिरता था
जैसे पैर के साथ वह समूचा पृथ्वी पर गिर जाता था
उसका दूसरा पैर ऊपर हवा में उठता था
जैसे वह समूचा आकाश में उठ जाता था

ऐसा दोलायमान अद्‌भुत्त नृत्य करता वह
प्रतिक्षण भूमि और आकाश को पवित्र करता था

                    कुछ फूल बरसते थे
                    कुछ अपने पर हँसते थे !