भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आत्मबोध / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
मैं लीन राम में राम लीन हैं, मुझमें
वही ब्रह्म है, मुझमें जो है उनमें॥
रचनाकाल: अक्तूबर १९५९