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आत्महत्या का प्रयास / तोताबाला ठाकुर / अम्बर रंजना पाण्डेय

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पोड़ा, शुक्तो, गोकुलपीठे, मोआ और काँचागोल्ले
जिसने संसार त्याग दिया हो जूठन जान
उस सन्यासिनी को मरन हेतु इतना आयोजन
करना पड़ता है

कलेवर की आसक्ति शंख है देबीमण्डप का
इसका नष्ट होना सम्भव नहीं इससे काली
पिपासिनी पीती है मानुष का रक्त भर-भर नित

मिष्टी अपूर्व, कटु, खारे, औमबोल, तीखे, फीके
अष्टव्यंजन सिद्ध किए किन्तु श्री जगन्नाथ को
बिना अर्पित किए खाने को बैठी संध्याकाल
जब अन्त में नीले थोथे से भरे काँचागोल्ले खाने को
हाथ उठाया, ठहर गया

सब जा चुके जन जीवन के पुनः आ खड़े हुए
जीवन जिनके कारण प्रिय था चले गए सब
एक-एक करके

किन्तु फिर भी ह्रदयगति का लोभ भरा था कपाल में
खोद भूमि गाड़ दिए सब काँचागोल्ले
जीवन सब चुक जाने के पश्चात् भी प्रिय है
पँचाँग पलटता है जो उसी में कितना सुख है पतिता को

आश्विन में दुर्गा कलेवर गढ़ता था कोई
एक और, एक और, एक और दुर्गापूजो करने में
आ गया बार्धक्य

किन्तु गया नहीं इन निष्फल प्राणों का मोह।