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आत्महन्ता / विश्वनाथप्रसाद तिवारी

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किस नाभि में
किस वन में
छिपी है तुम्हारी कस्तूरी

किस कोटर में
किस खोह में
भूली है तुम्हारी मणि

कहाँ है तुम्हारा सरोवर
हंसिनी

कितने योजन और है तुम्हारी स्मृति
आत्महंता!