भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आत्मा की प्यास तुम हो / रामेश्वर काम्बोज हिमांशु’
Kavita Kosh से
मैं अकिंचन !
पास क्या जो दूँ तुम्हें
धन-वैभव कुछ नहीं
पास केवल एक मन
पास नश्वर एक तन
माँगता है मन दुआएँ
माँगती हैं ये शिराएँ-
ताप तुमसे दूर हों
विघ्न सारे चूर हों
आँच न तुमको तपाए
मन-आँगन मुस्कराए
काम तेरे आ सकूँ
दर्द तेरे पा सकूँ
पीर का ले आचमन
सौंप दूँ मुस्कान तुझको
सन्ताप सारे मैं हटाकर
दूँ नया विहान तुझको
सभी सुख तुझ पर लुटा दूँ
सुख सारे मैं जुटा दूँ
गहन निशा में चाँद आकर
झरोखे से तुझको निहारे
और सूरज भोर में आ
प्यार से तुझको पुकारे-
‘सुप्रभात मेरे मीत प्यारे !
समर्पित है भाव-चन्दन
‘तुम सुखी हो’- कामना है
तुम हो मेरा मन -दर्पन
आत्मा की प्यास तुम हो
और मेरी आस तुम हो
सुख सदा तुझको मिलें
मन -सुमन हर दिन खिलें
आज का दिन रोज़ आए
गगन -धरा भी गीत गाए।