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आत्मा के गर्भ में / नंदकिशोर आचार्य

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चारों खूँट फैला
तप रहा मरूथल
आवें की तरह भीतर ही भीतर
क्या पकाता है ?

बोलो, तुम्हीं कुछ बोलो,
प्रजापति !

मेरी आत्मा के गर्भ में
क्या धर दिया पकने
मेरे ही पसार के चाक पर घड़ कर ?
ये आवाँ कभी तो खोलो,
प्रजापति !
मुझ में कभी तो हो लो !

(1982)