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आत्म-बोध / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
हम मनुज हैं —
मृत्तिका की सृष्टि
- सर्वोत्तम
- सुभूषित,
- सर्वोत्तम
प्राणवत्ता चिन्ह
सर्वाधिक प्रखर,
अन्तःकरण
- परिशुद्ध ;
- परिशुद्ध ;
प्रज्ञा
- वृद्ध !
- वृद्ध !
लघुता —
- प्रिय हमें हो,
- प्रिय हमें हो,
रजकणों की
अर्थ-गरिमा से
- सुपरिचित हों,
- परीक्षित हों।
- सुपरिचित हों,
मरण-धर्मा
मृत्यु से भयभीत क्यों हो ?
चेतना हतवेग क्यों हो ?
दुर्मना हम क्यों बनें ?
सदसत् विवेचक
मूढ़ग्राही क्यों बनें ?