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आत्म अनात्म / भवानीप्रसाद मिश्र
Kavita Kosh से
समझ में आ जाना
कुछ नहीं है
भीतर समझ लेने के बाद
एक बेचैनी होनी चाहिए
कि समझ
कितना जोड़ रही है
हमें दूसरों से
वह दूसरा
फूल कहो कविता कहो
पेड़ कहो फल कहो
असल कहो बीज कहो
आख़िरकार
आदमी है !