भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आत्म छलना -5 / स्वदेश भारती

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अयोध्या के राम
आम-जन की बातें सुनते-सुनाते थे
और शिकायतों को सुलझाते थे
तब अपने व्यक्तिगत सम्बन्धों के
बिखरे ताने-बाने को ठीक करते

किन्तु आज के आया राम, गया राम
कुर्सी के लिए आमजन का विश्वास तोड़ते
व्यक्तिगत स्वतन्त्रता का प्रदीप बुझाते
स्वार्थ और लोभ का अन्धकार रचाते

प्रजातन्त्र में अनैतिकता एक औजार है
जिसे प्रत्येक सत्ताधारी
अपने सुरक्षा कवच के लिए इस्तेमाल करता है
उसे सदा अपने पास सहेजकर रखता है

उसके लिए आमजन, आमराय,
जनमत बहेलिए का षडयन्त्र जनित
आखेटक खेल है
समय का तकाज़ा है कि
सत्ताधारी प्रदीप तब तक ही जलता है
जितना और जब तक उसमें आत्मलोभ का तेल है

कोलकाता, 6 अप्रैल 2014