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आदत या अधिकार / अंजना टंडन

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तुम्हें पंसद थी आजादी
और मुझे स्थिरता,

तुम्हें विस्तार
मुझे सिमटना,

तुम
अंतरिक्ष में हवाओं में
मैदानों में पहाड़ों पर
कविता लिखते रहे,

मैं
नयनों पर इश्क पर
मेहदीं पर सिंदूर पर
भाग्य सराहती रही,

तुम देहरी के बाहर हरापन उगाते रहे
मैं आँगन के पेड़ों को पहचानती रही,

बातें आदत की थी या अधिकारों की,

खूँटे हम दोनों के थे

फ़र्क़ सिर्फ रस्सी की लम्बाई में थे....।