भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आदत / ओमप्रकाश मिश्र
Kavita Kosh से
आय हमरी बहिनें
आपनोॅ बुतरू केॅ
जे हमरोॅ बुतरू संगें खेलै छेलै
उठाय केॅ लै गेलै
जबर्दस्ती
ई बात बादोॅ में साफ भेलै
कि ओकरा खीर खिलाना छेलै जबर्दस्ती ।
हमरी बहिन नै जानै छेलै कि
बुतरुवां खीर बाँटी लेतियै
जों ओकरा हटैलोॅ नै जैतियै जबर्दस्ती ।
खीर बाँटवोॅ के डोॅर ओत्तेॅ नै छेलै
डोॅर छेलै असल वै आदत सें
जे हमरोॅ बुतरुवां पैलेॅ छेलै
छीनी लै के जबर्दस्ती ।