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आदमक़द बौने / कुमार रवींद्र
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कैसे मृगछौने
हत्यारे पंजे हैं - दाँव हैं घिनौने
घर-घर में बैठे हैं
मुँह-ढँके शिकारी
कब तक बच पाएगी
हिरनी बेचारी
ख़ून-भरे आँगन हैं - काँपते बिछौने
घूम रही गली-गली
है ख़ूनी टोली
जाने कब बीत गई
शिशुओं की बोली
दैत्यों के हाथों में हैं डरे ख़िलौने
घायल दिन-रातों का
दर्द कौन बाँचे
चेहरों के नीचे हैं
हत्या के साँचे
रहते हैं यहाँ सिर्फ़ आदमक़द बौने