आदमखोरां रै खिलाफ / नन्द भारद्वाज
रोजीना 
दिनूगै-सूणी 
आ मोटी मिनखा-बस्ती 
अर इणरौ सिरजणहार -   
टेकरियां लारै लुक्योड़ै 
सूरज रै सांम्ही आयां उपरांत 
नींद सूं बारै आवै 
पगथळियां हेठै जमीं मैसूसतौ
अर सिंग्या में आवण सूं पैली 
व्हे जावै पाछौ अणमणौ अर उदास।  
फेर घणी ताळ 
सूनी आंख्यां अदीठ में टिकायां
मांय-ई-मांय 
कठैई डूबतौ-तिरतौ 
चितारतौ रैवै 
उण बीती रात  रौ सपनौ, 
जिकौ थ्यावस बंधावै - 
अर औई धीजौ, जीवायां राखै आखी ऊमर - 
अकारथ नीं व्हेण देवै जीवारी। 
भाख फाटण सूं लेय 
पौर-दिन चढण तांई 
इणरी सील खायोड़ी गळियां
उणींदी अर सूनी पड़ी रैवै घणी जेज - 
अर सेवट मूंन तोड़ती अेक ठाडी निस्कार 
इण ऊग्यै दिन री पैली सरूआत।  
अर यूं सूरज री ऊगाळी साथै 
सरू व्है जीवण रा सगळा कारज - 
घूमण लागै घट्टी रौ पाट 
भट्ठियां मांगण लागै भख 
अर सिलसिलौ सरू व्हैं 
कीं अणचींता कामां रौ - 
चौड़ी सड़कां 
अर चौरावा ताकती 
डकरेल दुकानां अर कारखानां रा 
खुलण लागै कराळ जाबू 
जिका अंधारै री ओट - 
        अपरतख रैवतां थकां 
अेक झीणी जैरीली हंसी 
अर खिंवती मुळक में भरमाय सकै मिनख रौ ईमान - 
अलोप कर सकै आवगौ आदमी!  
इण कारोबारी नगरी में 
अैड़ा पण कळा रा कमतर है, 
जिका हिमायत करता अजूबै करतब री 
असलियत नै राखतां अंधारै 
मांडै उजाळै री मीठी मोवणी बात - 
किणी नवै अंदाज 
खैलीजै कळा रौ कुबदी खेल 
अर अंधारै में तरतीबवार लाग्योड़ी कुरस्यां 
बजावै ताळियां पूरै उछाव
सरावै सगळा अजूबा करतब 
कीं कंवळा सबदां अर संकेतां में 
आगै बध नै बांटै इमदाद - 
         सौदै परवांण 
अदीठ बंधण में बंधीजता हाथां में। 
अै लांबी-उरळी 
अर समतळ सड़कां 
इण नगरी नै ओपती ओळख देवै, 
अै चौपड़ चौरावा तिरावा 
फांटा-मोड़ अर गळियां, 
लाखीणी बस्तियां में आप-बूतै जूंझतौ जीवण 
इणरी मातबरी रौ मांण बधावै।  
नगरी रै जीरण अतीत 
अर महल-माळियां परबारै  
आजाद मुलक में जीवै जिका जूंझार 
वांरी पीढियां रौ आज अर आगोतर 
फगत वांरै ई सारै -  
वांनै ई देवणौ है अणमणा आखरां नै धीजौ 
उकेरणा है चितरांम अणदेख्या फूलां रा
थ्यावस जीवां री जूणियां नै -   
       
तड़फा तोड़ता रैवै 
कीं अरथ-चूक व्हियोड़ा सबद 
कसमसता रैवै पूठां माथै रंग - 
अेक अणचींतौ अमूंजौ। 
अर इणी समचै भाळै पड़ता जावै 
हौळै-हौळै सगळा आकार 
वांरा कारण आधार 
अर औ घुटतौ अमूंजौ 
अेक दिन छेाड देवैै पंगत में ऊभणौ 
तोड़ नांखै खिड़क्यां रा काच 
अणूंता कायदा-कानून 
     - वांरी मरजी रा बंधण, 
असांयत मांड देवै 
गळियां अर खुली सड़कां माथै 
अणचींतौ उणियारौ - 
         ‘इंकलाब !’ 
जिण सूं डरती   संकती सिरकार 
सांयत रा ओला ताकण लागै, 
पण तर-तर बेकाबू व्हेता हालात 
उणनै तानासाही री हदां पार पुगाय दै।  
इणी नगरी रा 
कीं नफीस
जग-चावा मुसाहिबां रै घांटै 
ऊतरतौ रैवै 
मिनख नै पींच’र  काढ्योड़ौ 
रगत-हाडक्यां रौ अरक 
अणुतायां रौ आखौ इतिहास 
जिणमें जुड़ता रैवै नित नवा परसंग 
घटनावां आयै दिन - 
सिलसिलौ ओजूं जारी है। 
दिन भर रौ हार्यौ-थाक्यौ 
हांफतौ सूरज 
जाय अटकै आथूंणी टेकरियां माथै 
अर उणीं अबूझ दोगाचींती सूं लड़तौ 
सेवट ढळ जावै 
खितिज रै कांठै पार 
उजासहीण कर जावै 
इण जमीं-खंड रै पूरै चौफेर नै। 
घिरण लागै 
गैरौ अंधारौ च्यारूंमेर 
अनिरणै री काळी चादर 
ढक लेवै सैर री सूधी धड़कणां नै 
अर अकथ बेचैनी में 
पसवाड़ा फोरता रैवै आखी रात 
मिनखां रा अधूरा मन्सूबा। 
निस्चै ई 
अकारथ कोनी आ सगळी बेचैनी 
उफांण कांनी बधतौ 
अणथाग असंतोख 
गळियां में घुटती सांसां 
सेवट मांगैला पूरौ हिसाब - 
खुद रै कमतर परसेवै रौ। 
निरणाऊ दौर रै इण ठोस तळ माथै पूग 
जद पाछौ अणभव नै अंगेजूं -
परखूं खुद रौ लखांण, 
इतिहासूं आधार समचै भाळूं
मुलक रौ दीखतौ आकार 
जीवण री दोजखी रा सोधूं 
बुनियादी कारण - परियांण-रूप, 
सांप्रत कीं इण्यां-गिण्यां रौ अदीठ कारोबार - 
जुड़ जावै म्हारा हाथ आपूं-आप 
वां आदमखोरां रै खिलाफ 
इण नवै उठाव री 
लूंठी सरूआत में ! 
मई, ’73
	
	