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आदमखोरों के लिए / बैर्तोल्त ब्रेष्त / उज्ज्वल भट्टाचार्य

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ज़्यादा मीनमेख नहीं निकालनी चाहिए।
हाँ और ना के बीच 
फ़र्क़ बहुत अधिक नहीं होता है। 
सफ़ेद पन्ने पर लिखना एक अच्छी बात है 
सोना और शाम को खाना भी। 
जिस्म पर ताज़ा पानी, हवा 
क़ायदे की पोशाक 
कखग 
पेट की सफ़ाई ! 

जिस घर में किसी को फांसी लगी हो 
वहाँ फन्दे का ज़िक्र 
क़तई ख़ूबसूरत नहीं है। 
और कीचड़ में 
मिट्टी और बालू के बीच 
बहुत ज़्यादा फ़र्क़ करने से 
कोई बात बनती नहीं है। 

आह ! 
जिसे सितारों से भरे आसमान का 
अन्दाज़ा हो वो 
अपनी ज़बान बन्द ही रखे तो बेहतर है। 
                                    
रचनाकाल : 1922

मूल जर्मन भाषा से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य