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आदमी, महापुरूष और देवता / श्रीरंग
Kavita Kosh से
‘सुखी आदमी’
मुस्कुराता
नहीं दिखा कभी
दिखा परेशान हमेशा
सुख सुविधाओं की हिफाजत के लिए ......
‘दुखी आदमी’ भी
मुस्कुराता नही दिखा कभी
दिखा परेशान, दुःखों से मुक्ति के लिए ....
मुस्कुराते दिखे आदमी
दूसरों का सुख छिनते हुए देखकर
मुस्कुराते दिखे आदमी
दूसरों को दुःखी देखकर ....
‘मुस्कुराते हुये लोग’
न दुखी थे न सुखी’
‘मुस्कुराते हुये देवता’
‘मुस्कुराते हुए महापुरूष’
पता नहीं दुःखी थे कि सुखी .....।