भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आदमी-आदमी से / राजकिशोर सिंह
Kavita Kosh से
आदमी-आदमी से डरता है
इतना वह कसूर क्यों करता है
आदमी को मारकर आदमी
पिफर तो कुत्ते की मौत मरता है
आदमी अब जानवर बन गया
आदमी को आदमी चरता है
मिलते हैं बादल से जब बादल
तभी ऽुशी से मेघ बरसता है
जग ने देऽा है कमजोर लत्ते को
पेड़ों के बल ऊपर चढ़ता है
सीऽो तुम नदियों के संगम से
ऊपर से नीचे जल बहता है
आदमी को आदमी की बू से
राजकिशोर ऽुद-ब-ऽुद सड़ता है।