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आदमी आता है / सिर्गेय तिमफ़ेइफ़ / अनिल जनविजय

एक आदमी आता है, उसका सूट में सिलवटें हैं।
उसके चेहरे पर चश्मा चढ़ा है
और चश्मे का फ़्रेम बहुत पतला है

वह खाली-पीली बहस करता है, वह पागल है, हवा है।
पतले फ़्रेम का चश्मा उसकी नाक पर लगा है।
उसके सूट में सलवटें हैं और वह बड़ी तेज़ी से बहस करता है।
आदमी आता है और उसके आने से कमरा भर जाता है।

एक आदमी आता है, वह बड़ी देर तक चलकर यहाँ आया है।
उसके सूट में सलवटें है, वह बहुत बहस करता है।
उसके चेहरे पर लगा चश्मा थरथराता है, वह बौड़म है, और बहस करता है।
वह हवा है, पागल है, वह आया हुआ है।

मूल रूसी भाषा से हिन्दी में अनुवाद : अनिल जनविजय

लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए
             Сергей Тимофеев
          ПРИХОДИТ ЧЕЛОВЕК

Приходит человек, его костюм измят.
В его лице очки на тонких дужках.
Он спорит с пустотой, он сумасшедший, ветер.
Дрожат очки на тонких дужках.
Его костюм измят, он быстро спорит.
Приходит человек и заполняет комнату.
Приходит человек, он долго шел сюда.
Его костюм измят, он спорит слишком быстро.
Дрожат его очки, он идиот, он спорит.
Он ветер, сумасшедший, он пришел.