आदमी एक शब्द है / प्रमोद कौंसवाल
हां तुमको कैसे याद रह जाता है
और कैसे भूल जाते हो
शब्दों के आदमी को क्यों ऐसा जीना पड़ता है
याद करो और भूल जाओ
बोलो कविता को गहराई में
एक आदमी लिखता है और बोलता है
जैसे वह वाक्य वहीं के लिए था
तीन या चार शब्दों का एक समूह
और तुम लोग कहां कितने दूर चले गए
इन शब्दों से
एक खुजाता हुआ अपने पैर
दूसरा अपना हमप्याला सजाने में लग गया
बोलो या गाओ जैसे मैंने गुलजार से कहा
शब्दों को ये
घर के भीतर क्यों दबा गए
पूछ बैठा लिख बैठा बारबार
तुम शब्द हो आदमी की एक शक्ल में
जो माटी उगा दें पत्थर में इतने आसां
सन्न कर दें
उस मोड़ को जहां नुक्कड़ नाटक चल रहे
जहां बाबू सुभाष बोस की छोटी सी सेना
कनस्तरों को दुतरफा बजाकर
अंग्रेजों को भगा देती शोर से
इन शब्दों से हटा दो परिधान मेरे यारों
सुनो ये इरशाद क़ामिल को लिखा
सीधे मुंबई से कि
-उन दिनों जब कि तुम यहां थे
ज़िदगी जागी जागी-सी थी
सारे मौसम बड़े मेहरबां दोस्त थे
रास्ते दावतनामे थे
जो मंज़िलों ने लिखे थे
ज़मीं पर हमारे लिए
पेड़ बाहें पसारे खड़े थे
हमें छांव की शाल पहनाने के वास्ते
शाम को सब सितारे मुस्क़राते थे
जब देखते थे हमें
आती जाती हवाएं कोई गीत
ख़ुशबू की गाती हुई छेड़ती थी
गुज़र जाती थी आसमां पर नीलिमा का
एक गहरा तालाब था
जिसमें हर रात का एक चांद खिलता था
और नीलिमा पिघलनी पर बहता हुआ
वो हमारे दिल के कोनों को छू लेता था
जब तुम यहां थे- इन शब्दों के साथ थे
अश्कों में जैसे घुल गए सब मुस्करा के रंग
रस्ते में थक गई मासूम सी उमंग
दिल है कि फिर भी ख़्वाब सजाने का शौक़ है
पत्थरों पर भी गुलाब उगाने का शौक़ है
बरसों तों यों एक अमावस की रात है
अब इसको हौसला कहूं कि जिद की बात है
दिल कहता है कि अंधेरे में भी रोशनी तो है
माना कि रात हो गए उम्मीद के अलाव
इस रात में आग तभी तो कहीं पर है
आपकी याद कैसे आएगी
आप ये क्यूं न समझ पाते हैं
याद तो सिर्फ उनकी आती है
जिनको हम कभी भूल जाते हैं
कितने कम शब्दों में काम चल जाता है
इसकी परवाह किए बिना
जैसे बीड़ी पीता था मालवीयनगर में
चिट्ठी अपने मामा को
मेरी शादी करा दो
लो मैं चला देश से
कुछ शब्द जो तुम नहीं बोलते
टिहरी के शक़ील से
एक मास्टर से बुलवा लेते हो
टीवी की दीवारों पर
स्वप्न के अंधरकार में
दिल से दर्द के ज़माने
फेंक जाते हो
रोशनी की चकाचौंध में
इसी दौरान कुछ लिखा
नहीं कि दो तीन शब्दों के
बीच एक स्पेस ज्यादा लग गया
यहीं पर बिना ऊपर नीचे गए
यहीं बीच में लिखा जा चुका नाम तुम्हारा