भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आदमी और क़िताबें / प्रयाग शुक्ल
Kavita Kosh से
इन्तज़ार करते हैं आदमी
कोई पढ़े उनको !
लिखते हैं क़िताबें आदमी ।
करती हैं क़िताबें इन्तज़ार
पढ़े जाने का ।