भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आदमी और तकलीफ़ें / अच्युतानंद मिश्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैंने कहा-
भई! आदमी
दस हज़ार साल
पुराना है
और
तकलीफ़ें उसकी
उससे भी पुरानी
कि जब आदमी
आदमी नहीं था तकलीफ़ें तब भी थीं

उसने कहा-
अच्छा!
अब आदमी कहाँ है
अब तो बस तकलीफ़ें हैं
और अब तो बस
तकलीफ़ें ही रहेंगी
कई शताब्दियों तक