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आदमी और तकलीफ़ें / अच्युतानंद मिश्र
Kavita Kosh से
मैंने कहा-
भई! आदमी
दस हज़ार साल
पुराना है
और
तकलीफ़ें उसकी
उससे भी पुरानी
कि जब आदमी
आदमी नहीं था तकलीफ़ें तब भी थीं
उसने कहा-
अच्छा!
अब आदमी कहाँ है
अब तो बस तकलीफ़ें हैं
और अब तो बस
तकलीफ़ें ही रहेंगी
कई शताब्दियों तक