भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आदमी का फूल / महेश उपाध्याय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रंग भर-भर कर रह गया है
                 आदमी का फूल

एक परचा थामने सम्बन्ध का
कोष खाली कर रहा है गन्ध का
रोज़ होता जा रहा है शूल
भीतर आदमी का फूल

काट कर सम्बन्ध आदमज़ात से
बाँध अपने पाँव अपने हाथ से
वस्तुओं को दे रहा है तूल
                 आदमी का फूल