भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आदमी के लिए / तरुण भटनागर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आदमी प्रश्न नहीं पूछता,
आैर ना ही मेरे प्रश्नों का जवाब देता है,
पर मैं बहुत से प्रश्न आैर जवाब देने को आतुर रहा हंू
मरने से पहले,
मुझे बार-बार कहने है प्रश्न आैर जवाब,
आदमी के लिए।
यंू एक मौन सहमती है,
मेरे आैर आदमी के बीच
कि मेरे ही प्रश्न होंगे आैर मेरे ही जवाब,
आैर मैं उन प्रश्नों का जवाब भी दंूगा,
जिन्हें गटक गया था आदमी,
पान की दुकान में ढेर सारे तंबाकू आैर गुटके की तरह,
बिना यह सोचे कि उनसे कैंसर हो सकता है।
आैर यह सोचकर मुझे शमर् आती है,
कि वह गटक गया था, प्रश्न आैर जवाब,
जि़ंदगी के प्रश्न आैर जवाब, पूछना चाहता हंू आदमी से,
कि क्या वह भी शमार्ता है,
क्या उसकी भी एक नस धड़कती रह जाती है,
आैर डेथ सटिर्िफकेट बन नहीं पाता है।