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आदमी के लिए / बाल गंगाधर 'बागी'
Kavita Kosh से
यह ज़माना नहीं है उनके लिए
जो नहीं जी सका आदमी के लिए
वो करेंगे भी क्या आसमां से मोहब्बत
जो नहीं जी सका है जमीं के लिए
खुद को हंसाना है छोटी लगन
यह मोहब्बत नहीं है सभी के लिए
झांक लो झांक सकते हो खुद में ज़रा
ये जलन छोड़ दो दोस्ती के लिए
कलम से बयां दर्द होता है जो
समझते हैं जो है उन्हीं के लिए