आदमी के संबंध / रूप रूप प्रतिरूप / सुमन सूरो
समय के पता ठिकानोॅ केकरा छै?
कखनी केकरा पर की गुजरतै के जांनै छै?
लेकिन हे मीता! तोहें जे करने छोॅ
हृदय के अनुबन्ध, ऊ अनमोल छै।
कोय कहै छै संसार भूल-भुलैया छेकै;
जहाँ आदमी, हिन्नेॅ सें हुन्नेॅ
आरो हुन्नेॅ सें हिन्नेॅ बिलमी रहलोॅ छै
भीड़ोॅ-बीच निट्टा असकरोॅ।
लेकिन हे मीता!
तोरोॅ एहसास हरदम हमरा साथे रहै छै।
जिनगी के बियावान घड़ी में
जबेॅ हमरोॅ आवाज कोय नै सुनै छै
आरो वें घुरी-फुरी केॅ हमरे कान सहलाय छै
तखनियों लागै छै
कि यै भूल-भुलैया के कोनो किनारा पर
ठाढ़ोॅ तोंहें सब कुछ सुनी रहलोॅ छोॅ
आरो हमरा तक पहुचै के जीतोड़ कोशिश करी रहलोॅ छोॅ।
रेगिस्तान के ढूह हुअेॅ कि समुन्दर के ढौ
हर जगह हिम्मत बन्हैतेें हुअें
दर्द सहलैतें हुअें, मर्म बतलैतें हुअें
तोरोॅ आभास हमरा रहै छै छाया रं!
यही सें कहै छिहौं-
आदमी के संबंध सच हुअेॅ नै हुअेॅ
लेकिन ओकरोॅ गूँज
मृत्यु के पार तक साथें जाय छै
भरीसक ओकरोॅ आस्था बनी केॅ।