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आदमी को है डर आदमी का / हरि फ़ैज़ाबादी

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आदमी को है डर आदमी का
कैसे होगा गुज़र आदमी का

अस्ल में वो किसी का नहीं है
आदमी जो है हर आदमी का

साफ़ नीयत नहीं है अगर तो
बेजा हर फ़न, हुनर आदमी का

और कोशिश करो खुलते-खुलते
खुलता है पूरा पर आदमी का

भूख से कम नहीं जानलेवा
ज़िल्लतों में बसर आदमी का

ग़ैर मुमकिन किसी के हुनर से
होना अपना असर आदमी का

रोक सकती नहीं कोई मुश्किल
हक़ पे गर है सफ़र आदमी का