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आदमी नहीं है (कविता) / ओम पुरोहित ‘कागद’

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बहुत नाम था मिट्टी का
मिट्टी भिगोई गई
थापी और पकाई गई
मिट्टी ईटं बनी
ईटं का बहुत नाम हुआ
लोग भूल गए मिटटी को।
ईंट से घर बना
घर का बहुत नाम हुआ
ईंट भुला दी गई
घर,
बहुत फैला घर
घर में आया आदमी
अब आदमी
बहुत बड़ा हो गया
आदमी का बहुत नाम है
आदमी के सामने
घर बिल्कुल गौंण है
लेकिन
भुली गई मिटटी
आज भी
घर के नीचे है
भूली गई ईंट
आज भी
घर की दीवारों में हैं
परन्तु
आदमी के भीतर
आदमी नहीं हैं।