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आदमी मैं आम हूँ / आनंद कुमार द्विवेदी
Kavita Kosh से
वक़्त का ईनाम हूँ या वक़्त पर इल्ज़ाम हूँ,
आप कुछ भी सोचिये पर आदमी मैं आम हूँ
कुछ दिनों से प्रश्न ये आकर खड़ा है सामने,
शख्सियत हूँ सोच हूँ या सिर्फ़ कोई नाम हूँ
बिन पते का ख़त लिखा है जिंदगी ने शौक़ से,
जो कहीं पहुंचा नहीं, मैं बस वही पैगाम हूँ
कारवाँ को छोड़कर जाने किधर को चल पड़ा
राह हूँ, राही हूँ या फिर मंजिलों की शाम हूँ
है तेरा अहसास जबतक, जिंदगी का गीत हूँ
बिन तेरे, तनहाइयों का अनसुना कोहराम हूँ
दुश्मनों से क्या शिकायत दोस्तों से क्या गिला
दर्द का ‘आनंद’ हूँ मैं, प्यार का अंजाम हूँ