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आदमी से आदमी तक की यात्रा / विपिन चौधरी
Kavita Kosh से
शुरूआत से अन्त तक का सफ़र
आदमी से आदमी तक का ही है
भीड़ में ग़ुम होता आदमी
तनहाई से गुज़रता आदमी
आदमी से भिड़ता आदमी
आदमी के भीतर इन्सान खोजता आदमी
इतना सब होने पर भी
हरेक आदमी की एक आँख
ढूँढ़ती रहती है
अपने लिए ज़मीन का वह टुकड़ा
जिस पर किसी
दूसरे आदमी के पद-चिन्ह ना हों