आदमी / अर्जुन कुमार सिंह 'अशांत'
आदमी के हाथ में जब नाथ बाटे
तब कवन चिंता प्रलय के साथ बाटे।
उठ रहल आवाज-’’अब त हाथ रोक
गोड़ में विज्ञान के अब कील ठोक
ना त क्षण भर प्रलय के भेज न्योता
छीन ली श्रृंगार अब औतार होखी ?’’
बत का ह कि बहुत बाड़ डेराइल
शक्ति जब से आदमी के पास आइल
बाँट दऽ अधिकार जिनगी के बरोबर
कब तलक संहार से रहब लुकाइल
आज जवना शक्ति पर अभिमान बाटे
आदमी के ऊ महा बलिदान बाटे
चाँद पर चढ़ के चलाई रेल-गाड़ी
प्राण में हरि ईं बहुत अरमान बाटे
झुद्र स्वारथ ला प्रगति के पाँख छाँटल
ठीक नइखे आदमी के बाँह-काटल
सृष्टि के श्रृंगार सुन्दर आदमी बा
सृष्टि के उपहार सुन्दर आदमी बा
आदमी बाटे बराबर आदमी ला
सृष्टि के गुलजार सुन्दर आदमी ला
ऊ प्रलय के शक्ति से सावन मँगाई
ऊ धरा के भाग्य के हरिअर बनाई
भूल जाई विश्व आपुस के लड़ाई
आदमी जब आदमी के पास आई
रास्ता सुन्दर टटोली आदमी ला
बंद दिल के द्वार खोली आदमी ला
फोड़ दऽ विष-सुराही प्रीत घोल
झू ठजन अब साँच बोलऽ आदमी ला
के कहत बा आदमी कि शूल बाटे
खोल दिल के आँख देख फूल बाटे
प्यार से सेंकल संवारल आदमी के
जनवर समझल भंयकर भूल बाटे