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आदमी / ज्योति रीता
Kavita Kosh से
बंद हैं ट्रेनें,
बंद बसें,
नहीं चल रही ऑटोरिक्शा भी,
सुनसान पड़ी हैं सड़कें,
बंद खिड़की-दरवाजे,
बंद कारखाने
ठंडी पड़ रही चूल्हे की आग भी,
परंतु
खौल रहा है आदमी,
निरंतर
खौलता ही जा रहा है आदमी॥