जाओ
अब रोओ-
जाओ!
सोओ
और पाओ
जागो
और खोओ
स्मृति में अनुरागो
वास्तव में
ख़ून के आँसू रोओ।
बार-बार
निषिद्ध फल खाओ
बार-बार
शत्रु का प्रलोभन तुम जानो
आँसू में, खून में, पसीने में
हार-हार
मुझे पहचानो।
मृषा को वरना
तृषा से मरना
लौट-लौट आना
मार्ग कहाँ पाना?
रोओ, रोओ, रोओ-
जाओ!
पूर्वी बर्लिन, 4 अक्टूबर, 1955