भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आदम भेड़िये / रेखा चमोली

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आ जाओ
क्या चाहिए तुम्हें ?
निचोड़ लो एक-एक बूँद
हड़िडयों में मांस का एक रेशा भी न रहे
तुम्हें भेड़िया कहें ?
ना ना भेड़िया तुम्हारी तरह
मीठी-मीठी बातें नहीं करता
अपनी आँखों में झूठ-मूठ का प्रेम नहीं भरता
तुम आदम भेड़िये
कभी ईश्वर बनकर
कभी दानव बनकर
कभी सखा बनकर
तो कभी प्रेमी का रूप धरे आते हो
तुम्हारे नुकीले दाँत
आत्मा तक घुसकर
सारी जिजीविषा चूस ले जाते हैं
मांस खाने से पहले
मन को चबाने वाले आदम भेड़िये
अपनी सारी शक्ति लगाकर
तुम्हारे ऊपर थूकती हैं हम
ये जानते हुए भी कि
इसका उपयोग भी तुम
अपने दाँत घिसने में ही करोगे।