भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आदम - हौवा / संगीता गुप्ता

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


कमरे की
नीली रोशनी में
पढ़ने की मेज पर झुकी...
सामने की
दीवार पर टंगी
नीली पेन्टिंग को
देखते हुए भी
न देखती वह
अदेखती

नीले पर्दों से
झरते
रहस्यमय सन्नाटे को
आत्मसात करती
डूबती - उतराती

सोयी - असोयी
बैठी है
नीली उत्कंठा भरी
उसकी प्रतीक्षा में

यह बैठना
युगों का है
सदियों से
उसके लौटने की
नीली उम्मीद में ...