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आदरे अधिक काज नहि बन्ध / विद्यापति

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आदरे अधिक काज नहि बन्ध।
माधव बुझल तोहर अनुबन्ध।।
आसा राखह नयन पठाए।
कत खन कउसलें कपट नुकाए।।
चल चल माधव तोहें जे सयान।
ताके बोलिअ जे उचिज न जान।।
कसिअ कसउटी चिन्हिअ हेम।
प्रकृति परेखिअ सुपुरूख पेम।।
सउरभें जानिअ कमल पराग।
नयने निवेदिअ नव अनुराग।।
भनइ विद्यापति नयनक लाज।
आदरें जानिअ आगिल काज।।