आदर्शों का मधुबन सब वीरान हो गया / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
आदर्शों का मधुबन सब वीरान हो गया
मानवता का पावन पथ सुनसान हो गया
समझौता कर लिया ग़मों से हमने जब से
जीवन का हर जटिल प्रश्न आसान हो गया
सच कहता हूँ नज़र फेर ली जबसे तुमने
दर्द जिगर का अनचाहा मेहमान हो गया
देता था तूफ़ान कभी कश्ती को साहिल
दिन बदले तो साहिल ख़ुद तुफ़ान हो गया
सषर्घों से हाथ मिलाया बढ़ कर जिसने
अधंकार भी उसको स्वर्ण विहान हो गया
नई सभ्यता ने बदले हैं वस्त्र अनेेकों
तार-तार पर लज्जा का परिधार हो गया
बैठा ख़ुद मानव बारूदी ढेर बना कर
काल उसी का मानव का विज्ञान हो गया
दो रोटी के लिए भटकता फिरता कोई
पास किसी के सदियांे का सामान हो गया
ग़ैरों से क्या शिक़वा और शिक़ायत हो जब
अपने घर का आंगल ही अनजान हो गया
मिला जफ़ाओं का जो भी नज़राना मुझको
‘मधुप’ वही नवगीतों का वरदान हो गया