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आदिम डर / शकुन्त माथुर

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मेरे हाथ मॆं क़िताब है
और मैं लेट जाती हूँ
पसीने से तर
हर अच्छी चीज़ एक लड़की है
हर लड़की को एक रूमाल के रूप में
मैं पाती हूँ

रूमाल एक क़िताब है
जो किसी भी समय किसी के पास
जा सकती है
मैं क़िताब पढ़ती हूँ

हर वाक्य उसका डाल की तरह
हिल रहा है
ऐर हर शब्द एक सस्ते उपन्यास की तरह
खिंच रहा है
सफ़ेद अंडे-सी
दाँतों में दबी लड़की-
और मैं लेट जाती हूँ
पसीने से तर
आदिम डर !