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आदिम दीवारें / मानिक बच्छावत
Kavita Kosh से
ये दीवारें
आदिम हैं
गहरे भूरे रंग में धँसी
अपनी सतहों पर
खुरदुरी हो गई हैं
लगता है
इनमें अजीब
चिपचिपापन पसर गया है
एक लिसलिसा लवण
लगता है
वर्षों से कोई
रंग-रोगन नहीं हुआ है
ये
ऎसे कितने ही
गढ़ों, महलों, हवेलियो
या फिर तहखानों में एक
ताकतवर आधार की तरह
जमकर खड़ी हुई हैं
जिन पर खुदा हुआ है
एक अदृश्य इतिहास
जो कभी पढ़ा नहीं गया
पर ये अपने अतीत की
कथा
अपने मौन से बखानती हैं
लोग कभी-कभी
भूले-भटके आते हैं
और इन्हें छूकर
इनके अतीत को
महसूस करते हैं
लगता है
इन आदिम दीवारों पर
कई
सदियाँ छाई हुई हैं!