भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आदि के अंत / मथुरा प्रसाद 'नवीन'
Kavita Kosh से
जे सुरू होबऽ हइ
ओकर अंत भी जरूरी हइ
आदि के
अंत भी जरूरी हइ
ओ देखो, ऊ के है?
आराम से
खा के पसर रहले हे,
चलल नै जा है
तइयो अपन पेट भर रहले हे
है तो कठिन रोग
तइयो ऊ पचा रहले हे
कचौड़ी अउ महनभोग
खाय के आदत जेकरा
ऊहे सब खा हइ,
खाय बाला लोग
तनी ने लजा हइ
सजा बस गरीब के
मजा मारऽ दोसरे हइ,
लड़ै बाला गरदिस में
मजा मार दोसरे हइ
जेहे माल पैदा करै
ओकरे नै माल हइ
जेहे अन्न उपजावै
रोटी नै दाल हइ।