भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आधार / अभय श्रेष्ठ
Kavita Kosh से
जागता रहता हूँ हर पल,
कहीं उसकी कोमलता न हो नष्ट।
हृदय में सबसे प्रिय कविता की तरह,
वालेट मे रखा पुरानी प्रेमपत्र की तरह
किताब के बीच पन्नों में रखा मोरपंख की तरह,
मैंने सुरक्षित रखा है दिल मे वह जगह।
कभी तो लौटकर
फिर से अपनालोगी तुम इसे ।