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आधा गोलार्द्ध / गीता शर्मा बित्थारिया

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सदियों के
शोषण,अत्याचारऔर अपमान से थक चुकी
प्रेम विहीन जीवन से ऊब चुकी
स्त्री ने
एक दिन कहा
ये पृथ्वी अब
देश और राज्य में ना बांटी जाकर
बांट दी जाए दो हिस्सों में आधी आधी
एक गोलार्ध तुम्हारा एक गोलार्द्ध
हो मेरा
इस आधी पृथ्वी पर पूरी स्त्री बन रहना चाहती हूं

मैं अपने हिस्से वाले सघन वन में
स्वच्छंद विचरना चाहती हूं
अकेली अपने साथ निर्भय हो
बिना किसी घूरती आँख

अपने हिस्से वाली धरा पर
रचना है मुझे एक नये ढंग का संसार
जहां कुछ भी बिकाऊ नहीं होगा
ना प्रेम ना ही कोई देह
अपने स्वामित्व वाले इस भू भाग पर
सुनो प्रिय

मैं बो दूंगी प्रेम
जिसमें महकेंगे फूल लाल लाल पलाश के
उगा दूंगी
अपने केश से सघन संदली वन
बहा दूंगी
अपनी आंखों से गहरी नीली नदी
रंग दूंगी
अपने सपनों से सतरंगी इंद्रधनुष
सजा दूंगी
अपने अधरों से मीलों तक गुलाबी उपवन
उड़ा दूंगी
आंचल के छोर से बांध कर श्वेत श्याम मेघ

रोप दूंगी धान
मैं अपने हाथों से पहाड़ को समतल कर
भर दूंगी
अपने श्रम से खेत खलिहान अन्नकोठार
मैं जड़ लूंगी
ये तारे सितारे अपनी सुनहरी पगड़ी पर

घूम लूंगी
पंख उगा अगम्य अंतरिक्ष की आकाश गंगाएं
आवाहन कर महातत्वों
मैं कुंती सी जनूंगी अपनी संतति
गूंजगें मेरे आंगन में
ढोलक की थाप पर कन्या जन्म के मंगल गान

मना लूंगी
मैं अपनी सखियों संग सारे व्रत त्यौहार
लिख दूंगी
प्रतिबंधित उपलब्धियाँ अपने हिस्से में भी
भुला दूंगी
तुम्हारे द्वारा गढ़ी मढ़ी और थोपी गई परिभाषाएं
मिटा दूंगी
सहजात से सारे मतभेद जो बना रहें हैं
स्त्री को स्त्री का शत्रु

बसा लूंगी
सारी की सारी सखियों के साथ सहेलियों की बाड़ी
बना लूंगी
चाँद को अपनी स्याह रातों का जोड़ीदार
सूरज होगा
मेरे हिस्से वाले आंगन में कोहरे का पहरेदार
यहां हर घर में होगा
आकाश को निहारता गुनगुनाता वातायन

सुनो प्रिय गर अकुलाने लगे तुम्हारा मन
अपने हिस्से वाले रक्त रंजित भू भाग में
तो चले आना निर्भय होकर इस पार

इस पार जहां मैंने की है प्रेम की खेती
तुम्हें मिलेगा प्रेम बिना चुकाए कोई मोल
बस बदले में तुम्हें भी रंगना होगा अपना मन
बिल्कुल वैसे ही नीलाभ प्रेम रंग में

इस बार तुम्हें पार करनी होगी
ये भू मध्य रेखा
जो तुमने बना रखी है सदियों से तेरे मेरे बीच

अक्षांश देशांतर जैसी फैली हुयी
वो समस्त लक्ष्मण रेखाएं
तुम्हें मेरे साथ मिलकर मिटानी होगी
जो खींच दी थी तुमने कभी मुझे रोकने को
 
और हां आने से पहले
तुम महासागर में डुबोना मत भूलना
झूठे अनुबंधों से,अनुचित प्रतिबंधों से भरे पड़े
स्वयं के गढ़े बेढंगे से नीति नियम वाले ग्रन्थ

अपने बासंती प्रेम के साथ
ले आना नवल नूतन नित्य सा
मेरे हिस्से का नीला नीला आकाश
जिस पर उभरा हो मेरे हृदय का सप्तरंगी प्रतिबिंब

जान लिया है अब मैंने
उड़ने के पंख देता है प्रेम
पिंजरा नहीं होता है प्रेम
तुमसे प्रेम करना मेरी सजा मेरी कैद
कैसे हो सकती है भला?

प्रेम को मैंने संयुक्त उत्सव बना लिया है
तुमसे प्रेम करना
सौभाग्य हो ये मेरा
मेरा प्रायश्चित ना बने कदाचित इस बार